संविधान द्वारा प्राप्त आदिवासीयों का आरक्षण है।
भारतवर्ष में आज के हालात में आदिवासीयों को खत्म करने के नए-नए षड्यंत्र रचे जा रहे हैं; आदिवासीयों की पहचान आज खतरे में है, संविधान द्वारा प्राप्त आरक्षण धोखे में है, हमारी संस्कृति नष्ट होने के कगार पर है। असल में हम आदिवासीयों में एकता संघबव्दता को बढावा देने की आवश्यकता है।
आदिवासीयों के अस्तित्व को बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश !
अॅड. के.सी. पाडवी. (MLA) पूर्व आदिवासी विकास मंत्री.
2023 , 2024 की जनगणना की प्रक्रिया |
इन सब विषयों को सुलझाने के लिए हमें अपने रास्ते स्वयं ढूंढने होंगे; हमारा बचाव परिरक्षण तथा विकास हम सबको मिलकर ही करना होगा। हम अब और दूसरों पर निर्भर नहीं रह सकते। इसीलिए सन् 2023 , 2024 की जनगणना की प्रक्रिया में हम सबको हिस्सा लेना अनिवार्य है।
नियम के अनुसार हर दस साल में होनेवाली जनगणना सन् 2021 के बजाय (कोरोना की वजह से) सन् 2023 में होनेवाली है, इसमें हमें बहुत ही सावधानी बरतनी होगी।
जनगणना प्रपत्रों में आदिवासियों कॉलम |
सन् 1871 से अंग्रेज शासित भारत के कार्यकाल में हर दस साल में जनगणना का कार्य चलते आया है। सन् 1871 से 1951 तक के जनगणना प्रपत्रों में आदिवासियों के लिये रिलीजन कॉलम रखा गया था। सन् 1891 में हिंदू (ब्राम्हणिक), हिंदू (आर्य), हिंदू (ब्राम्हें), सिख, जैन, बुद्धिष्ट, झोरेस्ट्रियन (पारसी), मुसलमान, ख्रिश्चन, ज्यू, इत्यादि और अॅनिमिस्टीक रिलिजन (फॉरेस्ट ट्राईब्स) ऐसा कॉलम ध्यान में रखकर जनगणना के अंतर्गत आदिवासीयों का अस्तित्व रखा गया था। इसमें उन्होने आदिवासीयों को “प्रकृतीवादी” के रूप में सन् 1951 तक की जनगणना में जगह दी थी।
गृह मंत्रालय जनगणना महारजिस्ट्रार के पत्र |
सन 1951 के पश्चात आदिवासीयों को “अन्य” की श्रेणी में अंकित किया गया था; इसका दूसरा अर्थ ये भी प्राप्त होता है की, आदिवासीयों को तब से अब तक “अन्य” धर्म में जबरन ढकेला गया है । 20 नवंबर 2015; गृह मंत्रालय जनगणना महारजिस्ट्रार के पत्र के अनुसार भारत सरकार यह भी मानती है की, “हिंदुओं को मंदिर, मुसलमानों के लिए मस्जिद, सिखों के लिए गुरद्वारे आदि; जबकी आदिवासीयों का कोई भी देवालय नहीं है, वे पेड़-पौधों की पूजा करते हैं, जिस कारण उनका कोई धर्म नहीं माना जा सकता।
आदिवासीयों की विकास परियोजना हो |
इसके ठीक विपरीत अंग्रेजों के कार्यकाल में 31 मार्च 1930 में श्रीमान ओ. एच. बी. स्टार्ट (आय.सी.एस.) इनकी अध्यक्षता में स्टार्ट कमिटी बनी थी। इस कमिटी ने आदिवासी और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये विकास परियोजना बनाई थी, जिसमें शेड्यूल 1 में डिप्रेस्ड क्लास को रखा गया, शेड्यूल 2 में आदिवासीयों के लिए (अॅबओरिजनल एंड हिल ट्राईब्स) तथा शेड्यूल 3 में अदर बॅकवर्ड क्लास को निर्धारित किया था; इस तरह आदिवासीयों की विकास परियोजना हो या जनगणना हो, आदिवासीयों का अस्तित्व उस समय हमेशा कायम रखा गया था।
सन 2023 में होनेवाली इस जनगणना
स्वतंत्र भारत के उपरांत आदिवासीयों का अस्तित्व नष्ट होते हुए दिखाई दे रहा है। फिर भी आदिवासीयों को अपनी एक अलग पहचान दिलाने के लिए स्वर्गीय कार्तिकजी उरांव, पद्मश्री स्वर्गीय रामदयालजी मुंडा, आदि; इतिहासकार, समाजशास्त्री, बुद्धिजीवी, समाजसेवी एवम् साहित्यकारों नें अथक परिश्रम किए हैं। लेकिन भारत सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया है। इसीलिए मेरी ये मांग है की,“आदिवासीयों के अस्तित्व को बचाने के लिए सिर्फ नाच-गाना करके कुछ हासिल नहीं होगा,बल्कि जनगणना का प्रपत्र भी जानना जरूरी है, सन 2023 में होनेवाली इस जनगणना में हमें ‘अन्य’ धर्म की सूची में हर एक आदिवासी को”आदिवासी“यह शब्द लिखना होगा ।
सभी आदिवासी भाई, बहन, माताएँ, बुजुर्गजन, विशेषतः नौजवानों सभी से यह विनंती है की वे सभी इस कागज को ध्यान से पढ़कर, सँभालकर रखें और जनगणना के कार्यकाल में इसको याद से इस्तेमाल करें ये कागज फेंकना तो नहीं है, पर पाँवों तले भी कुचला नही जाना चाहिए। बल्कि आदिवासीयों का परिरक्षण करने के लिए इस कागज के संदेश को स्वयं अपने से सुरवात करते हुए, रिश्तेदार, मुहल्ले, गाँव, तहसिल, जिल्हा, राज्य तथा समस्त भारत देश में जनगणना के दौरान इस कागज पर लिखे हुए संदेश का प्रसार करें और इस संदेश द्वारा सबको ये अहसास दिला दें की हम भारत देश के सभी आदिवासी अभी भी जिंदा है। और हमें ये चेतावनी देनी होगी की,
“किसी रंजिश से कह दो की, मै जिंदा हूँ अभी”
“किसी रंजिश से कह दो की, मै जिंदा हूँ अभी”