Electoral Bond |सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला : सूचना के अधिकार की बड़ी जीत : चुनावी बांड को घोषित किया असंवैधानिक , लोगों को जानने का अधिकार कि किसने किस पार्टी को कितना चंदा दिया
सुप्रीम कोर्ट ने आज सामने आए अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि चुनावी बांड के जरिए राजनीतिक दलों को चंदा देने की जानकारी जनता को नहीं देना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है .
लोगों को यह मौलिक अधिकार
- संविधान के अनुच्छेद 19(1) के अंतर्गत प्राप्त है.
- यह चुनावी पारदर्शिता के भी खिलाफ है,
- चुनावी लोकतंत्र के भी विरुद्ध है.
मतदाताओं को यह जानने का अधिकार है कि राजनीतिक दलों को किस किस से कितना धन प्राप्त हुआ है. यह जानकारी मिलने से स्पष्टता आएगी और मतदाता सही निर्णय ले सकेंगे.
इससे गुमनाम फंडिंग पर रोक लगेगी.
चुनावी बांड योजना को यह कहकर उचित नहीं ठहराया जा सकता है कि इससे राजनीति में काले धन पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी.
चुनाव में काले धन का इस्तेमाल रोकने के चुनावी बांड के अलावा और भी तरीके हैं. इसलिए अब इलेक्टोरल बांड जारी नहीं किए जा सकेंगे .
जो बांड राजनीतिक दलों द्वारा अभी तक भुनाए नहीं गए हैं, उनके 26 करोड रुपए चंदा देने वालों को लौटाने होंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड जारी करने वाले भारतीय स्टेट बैंक को आदेश दिया कि वह 3 हफ्ते में यानी 6 मार्च 2024 तक चुनाव आयोग को यह जानकारी दें कि 2019 से अब तक चुनावी बांड से किस-किस दल को किस-किस व्यक्ति या संस्थान से कितना- कितना चंदा मिला है.
चुनाव आयोग इस जानकारी को अपनी वेबसाइट पर 13 मार्च 24 तक सार्वजनिक करें. इससे देश को पता चलेगा कि पिछले 5 साल में किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया.
गौरतलब है कि चुनावी बांड से राजनीतिक दलों को मिले चंदे की जानकारी आरटीआई में देने से इनकार कर दिया गया था.
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इसके लिए भारत सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि नागरिकों को सब कुछ जानने का असीम अधिकार प्राप्त नहीं है .बांड की जानकारी देने से दान दाताओं की गोपनीयता भंग होगी.
इस तर्क को सुप्रीम कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से पहले तक चुनावी बांड की जानकारी भारतीय स्टेट बैंक और भारत सरकार तक ही सीमित रहती थी .
शीर्ष कोर्ट ने इसे यह कहकर अनुचित करार दिया कि इस योजना को सत्ताधारी दल को फंडिंग के बदले अनुचित लाभ लेने का जरिया बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.